फासला और दौड़!

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सुना है मैंने, एलिस नाम की एक लड़की स्वर्ग पहुंच गयी है और वहां जाकर तकलीफ में है। भूखी है, प्यासी है, खड़ी है। दूर की यात्रा है जमीन से स्वर्ग तक की, परियों के देश तक की, और फिर परियों की रानी उसे दिखायी पड़ी, वृक्ष के नीचे खड़ी है और बुला रही है। आवाज सुनायी पड़ती है। आवाजें बड़ी भ्रामक हैं, वे सुनायी पड़ती हैं। हाथ दिखायी पड़ता है। हाथ बड़े भ्रामक हैं, वे दिखायी पड़ते हैं। और उसके आस-पास मिठाइयों का ढेर लगा है, फल-फूल का ढेर लगा है; और वह भूखी लड़की दौड़ना शुरू कर देती है। सुबह है, सूरज उग रहा है। वह भागती है, भागती है। दोपहर हो गयी, सूरज सिर पर आ गया, लेकिन फासला उतना का उतना है।

लेकिन वह लड़की लड़की है, अगर बूढ़ी होती तो रुक कर सोचती भी नहीं। वह लड़की खड़ी होकर सोचती है कि बात क्या है? सुबह हो गयी, दोपहर हो गयी दौड़ते-दौड़ते, और जो इतनी निकट मालूम पड़ती थी रानी, अब भी उतनी ही निकट है! कुछ भी फर्क नहीं पड़ा। डिस्टेंस वही है! तो वह चिल्ला कर पूछती है कि रानी, यह तुम्हारा देश कैसा है? सुबह से दोपहर हो गयी दौड़ते-दौड़ते, लेकिन फासला कम नहीं होता।

रानी कहती है कि तू थोड़ा धीरे दौड़ती है, इसलिए फासला कम नहीं होता। जरा तेजी से दौड़। तू दौड़ की ताकत कम लगा रही है, दौड़ काफी नहीं है।

यह बात लड़की की समझ में आ जाती है। बूढ़े की समझ में भी आ जाती है तो लड़की की समझ में आ जाये तो बहुत कठिन नहीं। उसकी समझ में आ जाती है कि जरूर फासला इसीलिए पूरा नहीं होता है कि दौड़ कमजोर है। इसलिए वह और तेजी से दौड़ती है। फिर सांझ सूरज ढलने लगता है, लेकिन फासला उतना का उतना ही है। फिर वह चिल्ला कर पूछती है कि अब तो अंधेरा भी उतरने लगा। वह रानी कहती है, तेरी दौड़ कमजोर है। वह लड़की और तेजी से दौड़ती है। अब तो अंधेरा भी काफी छाने लगा है, और रानी का दिखायी पड़ना मुश्किल होने लगा है। अब वह अंधेरे में चिल्ला कर पूछती है, तेरा देश कैसा है! अब तो रात भी उतर आयी, अब पहुंचने की आशा भी खोती है।

रानी की खिलखिलाहट सुनायी पड़ती है और वह कहती है, पागल लड़की, शायद तुझे पता नहीं, दुनिया में सब जगह–जिस पृथ्वी से तू आती है, उस जगह भी–कोई कभी वहां नहीं पहुंचता, जहां पहुंचना चाहता है। फासला सदा वही रहता है, जो शुरू करते वक्त होता है।

जन्म के दिन जितना फासला है, मृत्यु के दिन उतना ही फासला होता है। सिर्फ एक फर्क पड़ता है। जन्म के दिन सूरज निकलता है, मृत्यु के दिन सूरज ढलता है और अंधेरा हो रहा होता है। जन्म के दिन आशाएं होती हैं, मृत्यु के दिन फ्रस्ट्रेशन्स होते हैं, विषाद होता है, हार होती है। जन्म के दिन आकांक्षाएं होती हैं, अभीप्साएं होती हैं, दौड़ने का बल होता है; मृत्यु के दिन थका मन होता है, हार होती है, टूट गये होते हैं।

ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया