केवल अपने अनुभव पे विश्वास करो !

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मैं तुम्हें यह भी आगाह कर दूं कि मेरे चले जाने के बाद तुम मेरे आधार से किसी को मत जांचना, क्योंकि फिर तुम्हारा संबंध न बन पाएगा। तुम जब भी किसी को जांचने जाओ तो खुले मन से जांचना; कोई आधार लेकर मत जाना; कोई पक्षपात लेकर मत जाना। सब पक्षपात हटाकर शांत मौन भाव से सुनना। और जो भी तुम सुनो, जल्दी विश्वास कर लेने की कोई भी जरूरत नहीं है, न अविश्वास करने की कोई जरूरत है। दोनों एक जैसे हैं। कुछ लोग सुनते ही से विश्वास कर लेते हैं और कुछ लोग सुनते ही से अविश्वास कर लेते हैं। ये दोनों ही बातें जल्दबाजी की हैं।

न विश्वास की जल्दी करो, न अविश्वास की। अनुभव की चिंता लो। सारी ऊर्जा अनुभव में लगाओ।तुमने मेरे से कोई बात सुनी, अब तुम परखना इसको अपने अनुभव में। अगर अनुभव कह दे कि ठीक, तो ठीक। अनुभव कह दे गलत, तो किसी ने भी कही हो, किसी बुद्धपुरुष ने कही हो, कोई मूल्य नहीं रखती। अंततः तुम्हारा अनुभव ही निर्णायक है। अंततः तुम ही निर्णायक हो।

अजहूं चेत गंवार (संत पलटूदास-वाणी), प्रवचन-१९, ओशो