अपना दिया जलाओ

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एक साधु के आश्रम में एक युवक बहत समय से रहता था। फिर ऐसा संयोग आया कि युवक को आश्रम से विदा होना पड़ा। रात्रि का समय है, बाहर घना अंधेरा है। युवक ने कहा, रोशनी की कुछ व्यवस्था करने की कृपा करें।

उस साधु ने एक दीया जलाया, उस युवक के हाथ में दीया दिया , उसे सीढ़यां उतारने के लिए खुद उसके साथ हो लिया। और जब वह सीढ़यां पार कर चुका और आश्रम का द्वार भी पार कर चुका, तो उस साधु ने कहा कि अब मैं अलग हो जाऊं, क्योंकि इस जीवन के रास्ते पर बहत दूर तक कोई किसी का साथ नहीं दे सकता है। और अच्छा है कि मैं इसके पहले विदा हो जाऊं कि तुम साथ के आदी, हो जाओ। और इतना कह कर उस घनी रात मे , उस अँधेरी , रात मे उसने उसके हाथ के दीये को फूंक कर बुझा दिया।

वह युवक बोला, यह क्या पागलपन हुआ? अभी तो आश्रम के हम बाहर भी नहीं निकल पाए, साथ भी छोड़ दिया और दीया भी बुझा दिया।

उस साधु ने कहा, दूसरे के जलाए हुए दीये का कोई मूल्य नहीं है। अपना ही दीया हो तो अंधेरे में काम देता है, किसी दूसरे के दीये काम नहीं देते हैं। खुद के भीतर से प्रकाश निकले तो रास्ता प्रकाशित होता है, और किसी तरह रास्ता प्रकाशित नहीं होता है।

तो मैं निरंतर सोचता हूं, लोग सोचते होंगे कि मैं आपके हाथ में कोई दिया दे दूंगा, जिससे आपका रास्ता प्रकाशित हो जाए, तो आप गलती में है। आपके हाथ में कोई दीया होगा तो मैं उसे बड़ी, निर्ममता से फूंक कर बुझा दे सकता हूं। मेरी, मंशा और मेरा इरादा यह, है कि आपके हाथ में अगर कोई दूसरे का दीया हुआ प्रकाश हो तो मै उसे फूंक दूं, उसे बुझा दूं आप अंधेरे मे अकेले छूट जाएं, कोई आपका संगी-साथी हो तो उसे भी छीन लूं। और तभी जब आपके पास दूसरों का जलाया हआ प्रकाश न रह जाए और दूसरों का साथ न रह जाए, तब आप जिस रास्ते पर चलते है, उस रास्ते पर परमात्मा आपके साथ हो जाता है और आपकी आत्मा का दीया जलने की संभावना पैदा हो जाती है।

सारी, जमीन पर ऐसा हुआ है। सत्य की तो बहुत खोज है, परमात्मा की बहुत चर्चा है, लेकिन, लेकिन ये सारे कमजोर लोग कर रहे है, जो साथ छोड़ने को राजी नहीं है और जो दीया बुझाने को राजी नहीं है। अंधेरे में जो अकेले चलने का साहस करता है बिना प्रकाश के, उसके भीतर साहस का प्रकाश पैदा होना शुरु हो जाता है। और जो सहारा खोजता है, वह निरंतर कमजोर होता चला जाता है।

अमृत की दिशा

ओशो