अष्टावक्र के कुछ अजीबो गरीब तथ्य

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फरीद एक रास्ते से गुजरता था अपने शिष्यों के साथ और एक आदमी एक गाय के गले में रस्सी बांध कर घसीटे ले जा रहा था। गाय घिसट रही थी, जा नहीं रही थी। परतंत्रता कौन चाहता है!  फरीद ने घेर लिया उस आदमी को, गाय को अपने शिष्यों से कहा, खड़े हो जाओ, एक पाठ. ले लो।

मैं तुमसे एक सवाल पूछता हूं. ‘यह आदमी ने गाय को बांधा है कि गाय ने आदमी को बांधा है?’ वह आदमी जो गाय ले जा रहा था वह भी खड़ा हो गया. देखें मामला क्या है!  यह तो बड़ा अजीब प्रश्न है।  और फरीद जैसा ज्ञानी कर रहा है!शिष्यों ने कहा, बात साफ है कि इस आदमी ने गाय को बांधा है,  क्योंकि रस्सी इसके हाथ में है। फरीद ने कहा, मैं दूसरा सवाल पूछता हूं। हम इस रस्सी को बीच से काट दें तो यह आदमी गाय के पीछे जाएगा कि गाय आदमी के पीछे जाएगी?

तो शिष्यों ने कहा, तब जरा झंझट है। अगर रस्सी काट दी तो इतना तो पक्का है कि गाय तो भागने को तैयार ही खड़ी है। यह इसके पीछे जाने वाली नहीं है, यह आदमी ही इसके पीछे जाएगा। तो फरीद ने कहा, ऊपर से दिखता है कि रस्सी गले में बंधी है गाय के, पीछे से गहरे में समझो तो आदमी के गले में बंधी है। जिसके हम मालिक होते हैं, उसकी हम पर मालकियत हो जाती है।  तुम धन के कारण धनी थोड़े ही होते हो, धन के गुलाम हो जाते हो। धन के कारण धनी हो जाओ तो धन में कुछ भी खराबी नहीं है। लेकिन धन के कारण कभी कोई विरला धनी हो पाता है। धन के कारण तो लोग गुलाम हो जाते हैं। उनकी सारी जिंदगी एक ही काम में लग जाती है जैसे… तिजोड़ी की रक्षा! और धन को इकट्ठा करते जाना!जैसे वे इसीलिए पैदा हुए हैं!
ये महंत कार्य करने को इस संसार में आए हैं।

तिजोड़ी में भर कर मर जायेंगे, उनका महंत कार्य पूरा हो जाएगा! तिजोड़ी यहीं पड़ी रह जाएगी।

अष्टावक्र कहते हैं: तेरा कोई नहीं, तू किसी का नहीं, अकेला है—अतः शुद्ध:। इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि तू शुद्ध है।
शुद्ध तेरा स्वभाव है।