सत्य और असत्य

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ऐसा गुरु खोजों जिसमे श्रद्धा हो
ऐसा गुरु खोजों जिसमे श्रद्धा हो

सत्य जब भी अवतरित होता है,  तब व्यक्ति के प्राणो पर अवतरित होता है । सत्य भीड के उपर अवतरित नही होता । सत्य को पकडने के लिए व्यक्ति का प्राण ही वीणा बनता है ।

वही से झंकृत होता है सत्य । भीड के पास कोई सत्य नही है । भीड के पास उधार बाते है जो कि असत्य हो गयी है ।

भीड के पास किताबे है जो कि मर चुकी है । भीड के पास महात्माओ, तीर्थंकरो, अवतारो के नाम है, जो सिर्फ नाम है, जिनके पीछे अब कुछ भी नही बचा, सब राख हो गया है ।

भीड के पास परम्पराए है, भीड के पास याददाश्ते है, भीड के पास हजारो लाखो साल की आदते है ।

लेकिन भीड के पास वह चित्त नही है, जो मुक्त होकर सत्य को जान लेता है । जब भी कोई उस चित्त को उपलब्ध करता है, तो अकेले मे, व्यक्ति की तरह उस चित्त को उपलब्ध करना पडता है ।

ओशो