मुल्ला नसरुद्दीन का अनदेखा प्रेम

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रात के दो बजे मुल्ला नसरुद्दीन घर वापस लौट रहा था। उसने देखा कि एक मोटा—तगड़ा आदमी सड़क के किनारे एक पेड के नीचे खड़ा किसी स्त्री को प्रेम कर रहा है। यद्यपि अंधेरा बहुत था, फिर भी नसरुद्दीन की तेज निगाहों को यह समझने में देर न लगी कि वह इनसान कोई और नहीं, उसी का मित्र मटकानाथ ब्रह्मचारी है।

मुल्ला थोड़ी देर तक तो छिपा—छिपा यह रासलीला देखता रहा। जब उसे पक्का भरोसा हो गया कि यह मटकानाथ ही है, तो उसने जोर से आवाज लगाई, क्यों रे पाखंडी! खुलेआम सड़क पर रास रचा रहा है। ठहर बेटा, पूरे गांव में खबर कर दूंगा कल सुबह।

ऐसा सुनते ही मटकानाथ ब्रह्मचारी अपनी दुम दबा कर पास की गली में अदृश्य हो गया। अब वहां सिर्फ वह स्त्री बची और नसरुद्दीन। जो होना था सो हुआ। मुल्ला ने देखा कि स्त्री अत्यंत सुंदर और मोहक है। वैसे तो अंधेरा था, मगर फिर भी नसरुद्दीन ठहरा सौंदर्य का पारखी! दूर से ही पहचान गया। पास गया तो स्त्री के कपड़ों में लगे इत्र की सुगंध से मदहोश हो गया। स्त्री भी राजी हो गई। मुल्ला ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया। ऐसी अदभुत, कामोत्तेजक और मनमोहक स्त्री मुल्ला ने कभी देखना तो दूर, सोची भी न थी। उसे लगा कि जरूर मटकानाथ की साधना को भ्रष्ट करने के लिए स्वर्ग से इंद्र ने किसी अप्सरा को भेजा है।

जब प्रेम—क्रीड़ा करते—करते करीब पंद्रह मिनट बीत गए तब एक दुष्ट पुलिस का सिपाही न जाने कहां से कबाब में हड्डी बन कर आ टपका। उसने जोर से आवाज लगाई, कौन है? इतनी रात को यहां क्या हो रहा है? मुल्ला ने डरते—डरते कहा अरे हवलदार जी, मुझे नहीं पहचानते! मैं हूं मुल्ला नसरुद्दीन, यहीं पास के ही मकान में रहता हूं।

अरे, आप हैं भाईजान! पुलिसमैन ने टार्च की रोशनी में उसे पहचानते हुए कहा, मगर इतनी रात को आप यहां क्या कर रहे हैं?

कुछ न पूछो दोस्त, जरा रोमांस का दिल हो आया तो अपनी बीवी को प्यार कर रहा हूं।

अरे माफ करना भाईजान, मुझे क्या पता कि आप अपनी बीवी को प्यार कर रहे हैं! क्षमा करना मुल्ला।

क्षमा मांगने की कोई बात नहीं भाई— नसरुद्दीन बोला— जब तक तुमने टार्च की रोशनी नहीं डाली थी तब तक तो मुझे ही कहां पता था कि मैं अपनी ही बीवी से प्यार कर रहा हूं।

मन ही पूजा मन ही धूप

(संत रैदास-वाणी), प्रवचन-४

ओशो