संन्यास

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संन्यास का अर्थ है: इस जगत में पदार्थ की तरह नहीं, आत्मा की तरह जीना। संन्यास का अर्थ है: दृश्य में ही उलझे न रह जाना, अदृश्य को खोज लेना। रूप पर ही पकड़ न रहे, अरूप के साथ प्राणों का संबंध जुड़ जाए।

जो समय की धारा में क्षणभंगुर बबूले उठते हैं जीवन के, उतना ही जीवन नहीं है — इसकी उदघोषणा संन्यास है।

जीवन शाश्वत है, जन्म और मृत्यु के बीच आबद्ध नहीं है; जन्म के भी पूर्व है, मृत्यु के भी पश्चात है; हजारों जन्म, हजारों मृत्युएँ घटती हैं — लेकिन जीवन की धारा अविच्छिन्न बहती रहती है; उस अविच्छिन्न, शाश्वत, कालातीत को जान लेने का नाम संन्यास है।

इससे ऊपर और कुछ हो नहीं सकता। इसके ऊपर होने का उपाय ही नहीं है। जहाँ न काल है, न क्षेत्र; जहाँ न गुण हैं, न रूप है — जहाँ सारे द्वंद्व पीछे छूट गए और मनुष्य ने अद्वैत का स्वाद चखा, वहाँ संन्यास है।

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन