सदगुरु कौन है ?

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सदगुरु वही है, जो तुमसे तुम्हारी सारी सांत्वनाएं छीन ले यह सदगुरु की पहचान तुम्हें देता हूं: जो तुमसे तुम्हारी सारी सांत्वनाएं छीन ले। जो तुमसे कह दे कि गंगा में नहाने से तूम पवित्र नहीं होते, सिर्फ गंगा अपवित्र होती है। और तुम लाख मालाएं जपो, मंत्र पढ़ो, पूजाएं करो, पूजाओं के लिए नौकर रखो…क्योंकि जिनके पास सुविधा है, वे घर में ही मंदिर बना लेते है। पुजारी आकर, घंटी हिलाकर, जल्दी-जल्दी पूजा करके…क्योंकि उसे और भी जगह पूजा करनी है, कोई एक ही मंदिर थोड़े ही है। कोई एक ही भगवान थोड़े ही है। दस-पच्चीस जगह पूजा करके मुश्किल से जिंदगी की नाव को चला पाता है। और तुम कभी यह भी नहीं सोचते, कि चार पैसे देकर तुमने अगर किसी से पूजा करवा ली है, तो उस पूजा से हुआ कोई पुण्य तुम्हारा नहीं हो सकता। और उस आदमी का तो हो ही नहीं सकता। उसने चार पैसे ले ही लिए। उसका पुरस्कार तो उसे मिल ही गया।

सदगुरु की व्याख्या यही है कि वह तुम्हारी सांत्वनाएं छीन ले। तुम्हारी छाती में हड़बड़ी मचा दे। तुम कितनी ही गहरी नींद में होओ, तुम्हें झकझोर दे। और तुमसे कहे कि तुम जैसे हो, गलत हो। हालांकि तुम्हारे भीतर वह छिपा है, जो सच है। हालांकि तुम्हारे भीतर वह छिपा है, जो शाश्वत है।