श्रेष्ठ आत्माओं के जन्म का रहस्य

0
5157

श्रेष्ठ आत्माएं कब जन्म लेती है?

अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी। उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ, च्वांगत्से पैदा हुआ। उसी समय सारी दुनिया के कोने-कोने में कुछ अद्भुत लोग एकदम से पैदा हुए…

श्रेष्ठ आत्माएं कभी-कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकार हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब-करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए।

और उसी समय बिहार में छह और अद्भुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाये। और कोई कारण न था, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित केसकंबल, एक था संजय वेलट्ठीपुत्त, एक था मक्खली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे-से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं। और मौका मिल सका तो एक से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी। उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ, च्वांगत्से पैदा हुआ। उसी समय सारी दुनिया के कोने-कोने में कुछ अद्भुत लोग एकदम से पैदा हुए।

सारी पृथ्वी कुछ अद्भुत लोगों से भर गयी। ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे। प्रतीक्षारत थीं उनकीं आत्माएं; और एक मौका आया और गर्भ उपलब्ध हो सके। और जब गर्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत-से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक। फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला; और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला। फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए, कलियां टूटीं, इधर फूल खिला, उधर फूल खिला। रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।

ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग ने भी

हिटलर और स्टैलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा किये। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा किए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता।
अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की-अकेले एक आदमी ने। और हिटलर ने-अकेले एक आदमी ने-कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की। हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किये, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किये थे। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसे कभी किसी आदमी ने नहीं की थी। तैमूरलंग और चंगीजखांन सब बचकाने सिद्ध हो गये।

हिटलर ने गैस चैंबर्स बनाए। उसने कहा, एक-एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक-एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक-एक आदमी को मारना महंगा है, एक-एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक-एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए!
लेकिन सामूहिक हत्या करने के भी उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और की, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक-एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत देर भी लगती है। ऐसे एक-एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता।

इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
तो हिटलर ने गैस चैंबर बनाए। एक-एक चैंबर में पांच-पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस पांच हजार लोग खड़े किये, बटन दबा, वे गए। एकदम गए, इसके बाद हॉल। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए। न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मारकर खून गिराना पड़ा। खून-वून गिराने का हिटलर पर कोई नहीं लगा सकता जुर्म।

अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिल्कुल निर्दोष पायेगा। उसने खून किसी का गिराया नहीं, किसी की छाती में छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन हीं नहीं था। उसने बिल्कुल नई तरकीब निकाली, गैस चैंबर। जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खत्म हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। पहली दफा हिटलर ने, पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसे खो गया आदमी। ऐसे गैस चैंबर बनाकर उसने एक करोड़ आदमियों को अंदाजन गैस चैंबर में उड़ा दिया।

ऐसे आदमी को जल्दी जन्म मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर। बहुत समय लग सकता है अब हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन मामला है। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है कि मां-पिता, उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है-लंबी श्रृंखला। एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा?

हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां-बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहें हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, बीजाणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसको पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है।

लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध है। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और इतने गर्भ चारों तरफ उसके लिए तैयार हैं; और उसकी कोई विशेष, कोई विशेष उसकी माँगे नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम-भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छाओं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां-बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है।

लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, और किसी आदमी को इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं के लिए तो प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।

!! ओशो !!

पुस्तकः मैं मृत्यु सिखाता हूं
प्रवचन नं. 5 से संकलित