शून्य से प्रेम का जन्म

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एक आदमी ने गांव में एक मछलियों की दुकान खोली थी। बडी दुकान थी। उस गांव में पहली दुकान थी। तो उसने एक बहुत खूबसूरत तख्ती बनवायी और उस पर लिखवाया –”फ्रेश फिश सोल्ड हियर”—यहां ताजी मछलियाँ बेची जाती है।

पहले ही दिन दुकान खुला और एक आदमी आया ओर कहने लगा, ”फ्रेश फिश सोल्ड हियर”? ताजी मछलियाँ? कहीं बासी मछलियाँ भी बेची जाती है? ताजा लिखने की क्या जरूरत है?

दुकानदार ने सोचा की बात तो ठीक है। इससे और व्यर्थ बातों का ख्याल पैदा होता है। उसने ”फ्रेश” अलग कर दिया, ताजा अलग कर दिया। तख्ती रह गयी ”फिश सोल्ड हियर” मछलियाँ बेची जाती है। मछलियाँ यहां बेची जाती है।

दूसरे दिन एक बूढी औरत आयी और उसने कहां की मछलियाँ यहां बेची जाती है–”फिश सोल्ड हियर” कहीं और भी बेची जाती है। तो उस आदमी ने कहा की यह ”हियर” बिलकुल फिजूल है, उसने तख्ती पर से एक शब्द और अलग कर दिया। रह गया ”फिश सोल्ड”।
तीसरे दिन एक आदमी आया और कहने लगा ”फिश सोल्ड” मछलियाँ बेची जाती है? मुफ्त में देते हो क्या?
आदमी ने कहा, यह ”सोल्ड” भी खराब है, उसने सोल्ड को भी अलग कर दिया। अब रह गई ”फिश”

अगले दिन एक बूढा आदमी आया और कहने लगा, ”फिश ”? अंधे को भी मीलों दूर से पता चल जाता है, कि यहां मछलियाँ मिलती है। ये तख्ती काहे को लटका रखी है ? ‘’फिश’’ भी चली गयी। खाली तख्ती रह गई।
अगले दिन एक आदमी आया, वह कहने लगा, यह तख्ती किस लिये लगी है? दूर से देखने में पता नहीं चलता की यहां दुकान भी है। यह तख्ती दुकान की आड करती है। उस दिन वह तख्ती भी चली गई। वहां अब कुछ भी नहीं रहा एलीमिनेशन होता गया। एक-एक चीज हटती चली गयी। पीछे जो शेष रह गया वह है, शून्य।
उस शून्य से प्रेम का जन्म होता है, क्योंकि उस शून्य में दूसरे के शून्य से मिलने की क्षमता है। सिर्फ शून्य ही शून्य से मिल सकता है, और कोई नहीं। दो शून्य मिल सकते है। दो व्यक्ति नहीं। दो इन्डीवीज्युल नहीं मिल सकते; दो वैक्यूम, दो एम्पटीनेसेस मिल सकते है; क्योकि बाधा अब कोई नहीं है। शून्य की कोई दीवाल नहीं होती और हर चीज की दीवाल होती है।

संभोग से समाधि की ओर 

ओशो