भूख

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मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने पड़ोस में एक दानी के घर गया। और उसने कहा कि हालत बहुत खराब है और बच्चे भूखे मर रहे हैं; आज तो रोटी का भी इंतजाम नहीं, आटा भी नहीं खरीद सके, तो कुछ दान मिल जाए! तो उस आदमी ने कहा, जहां तक मैं समझता हूं, गांव में सर्कस आया है, और तुम जरूर ही, जो पैसे मैं तुम्हें दूंगा, उससे सर्कस देखोगे। उसने कहा, नहीं, आप उसकी फिक्र ही मत करो, उसके लिए तो हमने पैसे पहले ही बचा रखे हैं। सर्कस की तो कोई चिंता ही न करो आप।

 

गीता दर्शन

ओशो