जीवन की वीणा

0
2956

एक घर में मैने सुना है, सैकड़ों वर्षो से एक वीणा रखी हुई थी। वह वीणा घर में एक उपद्रव थी क्योंकि घर में जब भी कोई गंभीर बात चलती होती, कोई बच्चा उस वीणा को छेड़ देता और बूढ़े नाराज होते कि यह शोरगुल क्यो मचा रखा है। बंद करो यह। घर में जब भी कोई मेहमान आता तो वीणा छीपा दी जाती कि कहीं कोई बच्चा उसके तारों को न छेड़ दे। फिर घर के लोग तंग आ गए, कोई पूजा करता होता बच्चे वीणा छेड़ देते, कोई बच्चा वीणा को गिरा देता, घर झनकार से भर जाता, बड़ा डिस्टरबेंस मालूम होता। रात लोग सोए होते, चूहे दौड़ जाते, बिल्लियां दौड़ जाती, वीणा गिर जाती, आवाज हो जाती, घर में कोलाहल हो जाता, नींद टूट जाती।

फिर आखिर घर के लोगों ने तय किया कि इस वीणा को यहां से हटा देना उचित है। यह बड़े उपद्रव की चीज हो गई है। और उन्होने एक दिन घर के बाहर सुबह ही सुबह वीणा को ले जाकर कचरे घर में डाल दिया। वे घर में वापस भी नहीं लौट पाए थे कि उनके पीछे कोई अदभुत स्वरों की लहरी घर के भीतर प्रविष्ट होने लगी, कोई भिखारी रास्ते से गुजरता था उसने वीणा उठा ली और बजाने लगा है। वे ठगे रह गए, वे वापस लौट आए घर के लोग और उन्होने देखा कि उस कूड़े घर के वृक्ष के पास बैठ कर कोई भिखारी वीणा बजा रहा है। उनकी आंखो में आंसू आ गए और उन्होने उस भिखारी से कहा, क्षमा करना? हमें पता नहीं था कि वीणा में इतना संगीत छिपा है। हमारे घर में तो एक उपद्रव का कारण थी यह इसलिए हम इसे बाहर फेंक गए। तुमने हमारी आंखे खोल दी है। लेकिन उस भिखारी ने कहा, वीणा में कुछ भी नहीं छिपा है। जैसी अंगुलियां लेकर आदमी वीणा के पास जाता है वही वीणा से प्रकट होने लगता है।

जीवन की वीणा में कुछ भी नहीं छिपा है। हम जैसी अंगुलियां लेकर, जैसी दृष्टि लेकर जीवन के पास जाते हैं वही जीवन से प्रकट होने लगता है। हमारी अपात्रता है कि हम आनंद को जन्म नहीं दे पाते, वीणा से संगीत पैदा नहीं कर पाते; दोष वीणा को देते है। इस दोष से कोई वीणा से संगीत पैदा नहीं हो जाएगा। इस दोष से एक बात भर होगी कि जो अंगुलियां कुशल हो सकती थी, वे कभी कुशल नहीं हो पाएंगी, क्योंकि दोष उस पर थोप दिया गया जिसका दोष न था। अंगुलियां थीं गैर -कुशल, अकुशल और वीणा दोषी हो गई।

मनुष्य पात्रता पैदा नहीं कर पाया कि जीवन से संगीत उत्पन्न हो जाए। और दोष दे दिया जीवन को कि जीवन है असार, जीवन है व्यर्थ, जीवन है दुख, जीवन है नरक, जीवन है छोड़ देने योग्य। और जब जीवन को छोड़ देने योग्य समझ लिया गया, जब वीणा को हम कचरे घर पर फेंक आए, तो अगर वीणा टूट जाए और अगर असार हो जाए, और अगर वीणा के तार बिखर जाएं तो आश्चर्य क्या है?

ओशो

 

माटी कहै कुम्हार सूं, प्रवचन 10